बुजुर्ग रोजेदार : 89 साल के हाजी असगर अली की इबादत के आगे उम्र ने भी टेके घुटने
गोरखपुर। कांपते हाथ, ढलती उम्र खुदा की इबादत के लक्ष्य को पाने के लिए बाधक नहीं होती। जरूरत है बस जुनून की। यह जुनून हैं तकिया कवलदह के रहने वाले करीब 89 वर्षीय हाजी असगर अली में। उनकी इबादत के आगे उम्र ने भी घुटने टेक दिए हैं। बचपन से ही तीसों रोजा रख रहे हैं जिसका सिलसिला अब भी जारी हैं। इस बार भी रोजा रखने में कोई कोताही नहीं कर रहे हैं। इनका कूल्हा टूटा हुआ है। हर वक्त जुबां पर अल्लाह का नाम रहता हैं।
इनके पोते आईटी इंजीनियर मोहम्मद वसीम का कहना है कि अल्लाह की इबादत करने के लिए कोई उम्र नहीं होती। रमजान का महीना इबादत के लिए आता है। भले ही उन्हें कई बीमारियों घेर रखा है, लेकिन उनकी हिम्मत इबादत के लक्ष्य को पाने के लिए बाधक नहीं हैं। मेरे दादा उन तमाम इबादत गुजार नौजवानों व बुजुर्गों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। वहीं सूरजकुंड कॉलोनी की रहने वाली 65 साल की सफिया वारसी बचपन से रोजा रख रही हैं।
बीमारी और ढ़लती उम्र में भी सफिया वारसी का जज्बा कम नहीं हुआ। खुदा की इबादत बहुत तल्लीनता से करती हैं। पांचों वक्त नमाज, तरावीह, नफील नमाज व कुरआन शरीफ की तिलावत करती हैं। नाती पोतों से भरा पूरा परिवार है। सूरजकुंड कॉलोनी के ही सैयद मारूफ वारसी की उम्र भले ही 75 साल हो गई है, मगर इबादत ने उनके जज्बातों को कमजोर नहीं होने दिया। बचपन से तीसों रोजा रह रहे हैं। पाबंदी से मस्जिद में नमाज अदा करते हैं। मस्जिद में अजान देते हैं। गोरखपुर में ऐसे कई बुजुर्ग हैं जिनकी उम्र 70 से ऊपर है। इबादत के आगे उनकी उम्र ने भी घुटने टेक दिए हैं।




Post Comment