काव्यकला के संवर्धन में साहित्य की प्रमुख भूमिका : डॉ सत्या
कविताओं की महफिल में झलकी साहित्यिक उत्कृष्टता
साहित्यिक कवि गोष्ठी के साथ मनाया गया कवि उमेश का जन्मोत्सव
गोरखपुर। सरस्वती साहित्य सेवा संस्थान के तत्वावधान में कवि उमेश त्रिपाठी के 57वें जन्मदिवस के अवसर पर उनके ग्रीन सिटी फेज़ 2 स्थित आवास पर एक भव्य साहित्यिक कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अद्वितीय कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री सरस्वती त्रिपाठी ने की, जबकि मंच संचालन की जिम्मेदारी युवा और उभरते शायर वसीम मज़हर ने संभाली। कार्यक्रम में गोरखपुर की पूर्व मेयर डॉ. सत्या पांडे और प्रसिद्ध समाजसेवी अरशद जमाल सामानी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। डॉ. पांडेय ने अपने उद्बोधन में कहा, “जन्मदिन किसी भी व्यक्ति के जीवन का विशेष दिन होता है, और जब इसे साहित्यिक आयोजन के रूप में मनाया जाता है, तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। उमेश त्रिपाठी जी को उनके जन्मदिवस और इस सुंदर कवि गोष्ठी के आयोजन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।” अरशद जमाल ने कहा, “साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इस प्रकार के आयोजन बहुत आवश्यक हैं। उमेश त्रिपाठी जी ने इस अवसर पर जो साहित्यिक पहल की है, वह प्रेरणादायक है।” गोष्ठी में शहर के प्रमुख कवि और शायरों ने भाग लिया और अपनी भावपूर्ण रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रस्तुत काव्य की कुछ झलकियां इस प्रकार रहीं:
माधुरी द्विवेदी: “कम पड़ा ही नहीं ये किसी को कभी, इश़्क का माल-ओ-ज़र जादुई-जादुई।”
उमेश त्रिपाठी: “अभी तो शुरू है सफर मुकाम बाकी है, जो दिख रहा आगाज़ है, अंजाम बाकी है।”
सृजन गोरखपुरी: आप पारस हैं और पत्थर हम, बस ज़रा सा स्पर्श भर कर दें।
निखिल पांडेय… जमाल, हुस्न, अदा बेहिसाब हो जाए। मेरी दुआ है कि तू लाजवाब हो जाए।। तेरे वुजुद मे है ताजा गुलाब की खुशबू। मुस्कुरा दे तो फिजा बाग बाग हो जाए।।
प्रदीप मिश्रा… अगर खुश्बू सा फूलों में सिमटना आ गया होता। बहुत ही देर तक तुमको महकना आ गया होता।।
सविता वर्मा… मेरे अन्दर और बाहर कुछ टूट रहा है। उस खालीपन की पहचान हूं मैं।। घर में रहने वाली गृहिणी। जैसे घर का ही सामान हूं मैं।।
वसीम मज़हर… कल तलक वो था हमसफ़र मेरा। अब मेरी हमसफ़र है तन्हाई।।
शाकिर अली शाकिर… शरारत में मैं उसकी अपना बचपन देखता हूँ जब। मेरा बच्चा मेरे कांधे पे आ कर बैठ जाता है।।
बहार गोरखपुरी… याद करती है बस उसे दुनिया। जो वतन पर निसार होता है।। आखिर में उमेश त्रिपाठी ने अतिथियों व कवियों का धन्यवाद व्यक्त किया।
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