पैग़ंबरों के बाद हज़रत अबू बक्र इंसानों में सबसे अफ़ज़ल : मुफ्तिया गाजिया
तुर्कमानपुर में महिलाओं की महफ़िल
गोरखपुर। रविवार को मकतब इस्लामियात तुर्कमानपुर में महिलाओं की 14वीं महाना महफ़िल सजी। अध्यक्षता ज्या वारसी ने की। मुख्य वक्ता मुफ्तिया गाजिया ख़ानम अमजदी ने कहा कि अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना अबू बक्र सिद्दीके़ अकबर रदियल्लाहु अन्हु मुसलमानों के प्रथम खलीफा हैं। आप पैग़ंबरों के बाद इंसानों में सबसे अफ़ज़ल हैं। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद खलीफा के रूप में आपको चुना गया। आपकी नज़र में न कोई ऊंचा था और न कोई नीचा। हज़रत अबू बक्र सबको समान दृष्टि से देखते थे। अल्लाह के रास्ते में आप दिल खोल कर खर्च करते थे। आपने बेशुमार गुलामों को खरीद कर आज़ाद किया। जिनमें पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुअज्जिन हज़रत बिलाल भी शामिल हैं। आपने पैग़ंबरे इस्लाम की ज़िंदगी में उनके हुक्म से 17 वक्तों की नमाज़ पढ़ाईं। इंतक़ाल के दिन पैग़ंबरे इस्लाम ने आपके साथ मिलकर नमाज़े फज्र अदा की। पैग़ंबरे इस्लाम ने आपको सफरे हज के लिए सहाबा किराम का अमीर-ए-लश्कर बना कर भी भेजा।मुफ्तिया कहकशां फ़िरदौस ने कहा कि हज़रत अबू बक्र की मेहनत से बेशुमार सहाबा किराम ने इस्लाम अपनाया। जिनमें मुसलमानों के तीसरे खलीफा हज़रत उस्माने गनी, हज़रत ज़ुबैर, हज़रत अब्दुर्रहमान, हज़रत तल्हा और हज़रत साद के नाम मुख्य रूप से लिए जाते हैं। हज़रत अबू बक्र ने पूरी ज़िन्दगी इस्लाम का परचम बुलंद करने में लगा दी। आपकी साहबजादी हज़रत आयशा से पैग़ंबरे इस्लाम ने निकाह किया। पैग़ंबरे इस्लाम के साथ आपने मदीना की तरफ हिजरत किया। क़ुरआन-ए-पाक की आयत में आपका ज़िक्र है। आपका 13 हिजरी में इंतक़ाल हुआ। हज़रत आयशा के हुजरे में पैग़ंबरे इस्लाम के पहलू में दफ़न हुए। आपकी उम्र तक़रीबन 63 साल और खिलाफत 11 हिजरी से 13 हिजरी तक दो साल तीन महीने दस दिन रही। मुसलमान मदीना जाकर आपकी बारगाह में अकीदत का सलाम जरूर पेश करते हैं।संचालन करते हुए फलक खातून व शिफा खातून ने कहा कि हज़रत अबू बक्र अरब के मशहूर और अमीर दौलतमंद लोगों में शुमार किए जाते थे। दीन-ए-इस्लाम में दाखिल होने के वक्त आपका शुमार मक्का के बड़े बिजनेसमैन में होता था। आपने सारी दौलत अल्लाह के रास्ते में लगा दी। यहां तक कि इंतक़ाल के वक्त कोई काबिले ज़िक्र चीज़ आपके पास मौजूद नहीं थी। आपको अल्लाह ने पाकीज़ा व उम्दा अख्लाक से नवाजा था। आपने तन, मन, धन से दीन-ए-इस्लाम की खिदमत की। मुसलमानों पर भी ज़रूरी है कि वह पैग़ंबरे इस्लाम, सहाबा किराम, अहले बैत की ज़िंदगी के बारे में जानें और क़ुरआन-ए-पाक व शरीअत पर पूरी तरह से अमल करके आगे बढ़ें। मुसलमानों की खोई हुई शान व शौकत सिर्फ और सिर्फ क़ुरआन व हदीस की शिक्षाओं से ही वापस मिल सकती है। जब पैग़ंबरे इस्लाम से मुसलमानों का रिश्ता मजबूती से जुड़ेगा तभी सफलता हमारे कदम चूमेगी। कुरआन-ए-पाक की तिलावत फिजा खातून ने की। हम्द व नात सना फातिमा, फाइजा, खुशी, उमरा, अक्सा, गुल अफ्शां, सानिया ने पेश की। हदीस-ए-पाक आयशा व सादिया ने पेश की। तकरीर फिजा, नूर व खुशी ने की। अंत में दरूद ओ सलाम पढ़कर मुल्क में अमन की दुआ मांगी गई। महफ़िल में आलिमा कहकशां फातिमा, जिक्रा शेख़, अख्तरुन निसा, शबाना खातून, रजिया, अस्गरी खातून, आस्मां खातून, किताबुन निसा, तस्मी, फलक, नूरी, नूर अज्का, आलिया, खुशी नूर, मुस्कान, तैबा नूर आदि मौजूद रहीं।
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