गोरखपुर के बहाने देश की कथा है ‘ गोरखपुर की एक अनकही कहानी

गोरखपुर।जन संस्कृति मंच ने उपन्यास ‘ गोरखपुर की एक अनकही कहानी ’ पर बातचीत का आयोजन किया गोरखपुर। जन संस्कृति मंच की गोरखपुर इकाई ने आज शाम बैंक रोड स्थित होटल विवेक के सभागार में कथाकार तनवीर सलीम के उपन्यास ‘ गोरखपुर की एक अनकही कहानी ‘ पर बातचीत का आयोजन किया। उपन्यास ओर बोलते हुए वरिष्ट आलोचक प्रो अनिल राय ने कहा कि ‘ गोरखपुर की एक अनकही कहानी ‘ पढ़ते हुए नहीं लगता कि यह रचनाकार की पहली कृति है। यह उपन्यास अपने शिल्प की संरचना, कलात्मक रूपबंध, अभिव्यक्ति के कोशल और अनुशासन की सजगता से यह संभव हुआ है। उन्होंने कहा कि तनवीर सलीम ने अपने इस उपन्यास में पॉपुलर फिक्शन के उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए नया औपन्यासिक शिल्प अविष्कारित किया है। वे उपन्यास में गहराई से इतिहास के प्रश्नों की ओर ले जाते हैं।

‘ गोरखपुर की एक अनकही कहानी ’

उपन्यास में बहुजन समाज, जाति-धर्म, सांप्रदायिकता के सवालो से टकराते हुए मनुष्यता की मुक्ति की छटपटाहट है। प्रो राय ने उपन्यास में इतिहास की प्रमाणिकता पर उठे सवाल पर कहा कि यह किताब इतिहास ग्रन्थ नहीं है। उपन्यास में यथार्थ का सृजनात्मक रूपान्तरण है। इसमें हूबहू इतिहास नहीं है लेकिन इतिहास दृष्टि व इतिहास चेतना मौजूद है। तनवीर सलीम इस उपन्यास में इतिहास की ओर लौटते हुए वर्तमान से संवाद कर रहे हैं। यह गोरखपुर के बहाने देश की कथा है। 

मनोचिकित्सक एवं लेखक डॉ अशोक जाह्नवी प्रसाद ने कहा कि उपन्यास ने उन्हें पसमांदा समाज के प्रश्नों की ओर खींचा है। पसमांदा समाज के प्रश्न केवल उनका प्रश्न नहीं है बल्कि हम सभी का है। उन्होंने कहा कि उपन्यास में पात्रों की भरमार है लेकिन ने पाठ के प्रवाह को बाधित नहीं करते। कुछ पात्रों के विकास में जरूर कमजोरी है। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक कहानी में तथ्य उसी तरह नहीं होते लेकिन तथ्यों को नजरअंदाज करना उसे कमजोर बना सकता है। इस उपन्यास में हमारी कल्पनाशीलता के क्षितिज को विस्तारित करने की क्षमता है। उपन्यास पर बातचीत की शुरुआत करते हुए गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ रामनरेश राम ने कहा कि यह उपन्यास हमारे सामने वैकल्पिक इतिहास के रचनात्मक मूल्यांकन का नमूना सामने रखता है। इसमें उपन्यास की प्रचलित विधा टूट जाती है जो पाठकों के सामने मुश्किल भी लाती है। उपन्यास का भौगोलिक विस्तार बहुत है। ऐसा लगता है कि लेखक के पास बहुत सारी बातें हैं जिसे वह कह देना चाहता है। यह एक तरह से गोरखपुर का अनकहा इतिहास है। उपन्यास इस बात का को हमारे सामने लाता है कि भारत के समाज की अग्रगामी विकास में जाति व्यवस्था कैसे बाधक बनी हुई है। 

शिक्षा अधिकार आंदोलन के कार्यकर्ता डाॅ चतुरानन ओझा ने कहा कि उपन्यास में राजनीति की बहुत बाते हैं लेकिन यहां ये बातें नारे या राजनीतिक प्रचार की तरह नहीं है बल्कि लेखक साहित्य के गहरे दायरे में कमजोरों के पक्ष में राजनीतिक विचार को खड़ा करता है। उपन्यास में राजनीतिक बहसों में सही राजनीति खड़ा करने की प्रतिबद्धता दिखती है। गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो चन्द्रभूषण अंकुर ने उपन्यासा में चौरीचौरा विद्रोह सहित कुछ अन्य प्रसंगों में तथ्यों पर सवाल खड़े किए और कहा कि उपन्यास में उत्पीड़ित व वंचित समाज की एकता को महत्वपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

उन्होंने यह भी कहा कि अमरीका के पूरी दुनिया की निगहबानी तंत्र को ज्यादा महत्व देना उसी तरह से है जैसे हालीवुड की फिल्में करती आयी हैं। यह हमें दिमागी रूप से असहाय बोध में डालता है। कथाकार रवि राय ने उपन्यास में घटनाओं की बुनावट बहुत बढ़िया है। भाषा शैली आकर्षक है। सामाजिक अन्याय, राजनीतिक भ्रष्टाचार को उजागर करते हुए उपन्यास प्रेम और एकता के पक्ष में खड़ा होता है। देश के अधिकतर ज्वलंत प्रश्नों को कई पीढ़ी के पात्रों के जरिए बहस के केन्द्र में लाना उपन्यास का मजबूत पक्ष है। जन संस्कृति मंच, गोरखपुर के अध्यक्ष अशोक चौधरी ने कहा कि उपन्यास एक बार में पढ़ा ले जाने की क्षमता रखता है। विवरण चित्रात्मक हैं और देश-विश्व की घटनाओं को गोरखपुर के समाज पर पड़ने वाले प्रभाव और यहां के सामान्य लोगों का उसे देखने का नजरिया प्रस्तुत करने में उपन्यास लाजवाब है। मऊ  से आए हाशिम अंसारी ने उपन्यास में मोमिन कांफ्रेंस और पसमांदा समाज के सवालों और भूमिका को केन्द्र में लाने के लिए लेखक तनवीर सलीम की तारीफ की। जमीर अहमद पयम ने गोरखपुर में हिन्दू और उर्दू में लिखे जा रहे साहित्य की चर्चा करते हुए कहा कि गोरखपुर के अदबी दुनिया में यह उपन्यास अपने तरीके से हस्तक्षेप करता है। 

‘ गोरखपुर की एक अनकही कहानी ‘ के रचनाकार तनवीर सलीम ने उपन्यास में वर्णित कविताओं का पाठ किया और श्रोताओं द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब दिए। कार्यक्रम का संचालन जन संस्कृति मंच के मनोज कुमार सिंह ने किया। कार्यक्र्रम में गुजरात के पूर्व डीजीपी डाॅ विनोद मल्ल, साहित्यकार डाॅ वेद प्रकाश पांडेय, फिल्मकार प्रदीप सुविज्ञ, वरिष्ठ रंगकर्मी राजाराम चौधरी, शायर सरवत जमाल, कवयित्री डाॅ रंजना जायसवाल, सुरेन्द्र मोड, अबदुल्ला सिराज, संदीप राय, चक्रपाणि ओझा, ओंकार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार कामिल खान, आलोक शुक्ल, मनोज यादव, कलीमुल हक सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।

Post Comment

You May Have Missed