मशहूर शायरों के कलाम से सजी साहित्यिक महफ़िल

चौधरी अब्दुल रहमान मेमोरियल सोसायटी, गोरखपुर के अंतर्गत 'शायरी की महफ़िल' का भव्य आयोजन

शायरी के मंच पर पिता की विरासत को सजो रहें अरशद जमाल

उर्दू शायरी की रचनात्मकता और गहराई को मिला नया मंच

गोरखपुर। चौधरी अब्दुल रहमान मेमोरियल सोसायटी, गोरखपुर द्वारा ‘शेरी निशस्त’ का हुआ आयोजन , जिसमें साहित्य, शेरो-शायरी के प्रेमियों ने शिरकत की।  उर्दू के मशहूर शायर शमीम शहज़ाद ने की कार्यक्रम की अध्यक्षता, जबकि इंजीनियर शम्स अनवर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।कार्यक्रम का संचालन मोहम्मद फर्रूख़ जमाल ने किया।

    गोरखपुर के अंतर्गत आयोजित ‘शायरी की महफ़िल’

मुख्य अतिथि इंजीनियर शम्स अनवर ने अपने वक्तव्य में कहा कि चौधरी अब्दुल रहमान शिक्षा के प्रबल समर्थक थे जोकि उर्दू साहित्य से गहरा लगाव रखते थे। उन्होंने विशेष रूप से लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई अहम कार्य किए। कार्यक्रम के संयोजक और चौधरी अब्दुल रहमान समिति के अध्यक्ष अरशद जमाल सामानी ने बताया कि उनके परिवार में शेरो-शायरी का माहौल हमेशा से रहा है। उनके पिता चौधरी अब्दुल रहमान साहित्यिक कार्यक्रमों में हमेशा अग्रणी भूमिका निभाते थे। जिनकी याद में इस ‘शेरी निशस्त’ का आयोजन किया गया है।

         शायरों को सम्मानित करते आयोजक

इस कार्यक्रम में कई जाने-माने शायरों ने अपनी शायरी पेश की।

शायर जलाल सामानी ने पढ़ा:”दायारे शब में सितारों का रक़्स जारी है।मेरे वजूद पे हर एक लम्हा भारी है।” 

शायर कलीमुलहक़ ने कहा: “आंख पागल थी उसे ख्वाब में पाना चाहा।नींद रूठी है तो अब होश ठिकाने आये।” 

क़ाज़ी अब्दुर्रहमान ने सुनाया: “इसका किसको था यक़ी किसको इसका था गुमां।एक जुगनू की चमक से इतना डर जाएगी रात।” 

शायर शाकिर अली शाकिर ने अपनी शायरी पेश की: “तेरे जैसा ही मुझ को चाहिए। अबतू जितनी खूबसूरत है बहुत है।” 

शायर वसीम मज़हर ने कहा: “बंद खिड़की से झांकने के लिए।आंख को कान करके देख लिया।” 

शायर सलाम फैज़ी ने पढ़ा: “मैं दोस्ती से गुरेज़ां कभी नहीं होता।मुझे भी देख मगर अपनी आस्तीं भी देख।” 

हाफिज़ नासिरुद्दीन ने पढ़ा: “लोग कहते हैं मुश्किल है राहे जुनूं।फिर भी इस राह से आते जाते हैं लोग।” 

शायर सिददीक़ मजाज़ ने अपनी ग़ज़ल पेश की: “क़्यादतों की कसौटी पे किस को अब परखूं।में डर रहा हूं किसी को इमाम करते हुए।” 

डॉ. बहार गोरखपुरी ने कहा: “दिल पत्थर का अपना बनाऊं ऐसा कैसे हो सकता है।तुम रूठो और मैं ना मानाऊं ऐसा कैसे हो सकता है।” 

शमीम शहज़ाद ने अपने कलाम में कहा: “कोई गदा हो नहीं जाता दर से ख़ाली हाथ।यह और बात कि हम तंग दस्त रहते है।” 

आसिम गोंडवी ने पढ़ा: “हुई है यहां आतिश ए नमरूद भी ठंडी।कुछ राहे मोहब्बत में नहीं बे ख़ौफ़ ओ ख़तर आ।” 

इस अवसर पर कई सम्माननीय व्यक्तित्व, जिनमें फैसल जमाल सामानी, अफज़ल जमाल सामानी, डॉक्टर शोएब, नदीम अख़्तर, शम्स तबरेज़, युसुफ़ जमाल आदि मौजूद रहे। अंत में कमेटी के अध्यक्ष अरशद जमाल सामानी ने सभी अतिथियों और शायरों का धन्यवाद ज्ञापित किया।

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