समस्याओं के ख़िलाफ़ आम जनता को एकजुट और लामबंद करना होगा : प्रसेन
भगत सिंह की विरासत : निरंतरता और परिवर्तन विषय पर विचार गोष्ठी
गोरखपुर। दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा की ओर से चलाए जा रहे ‘स्मृति संकल्प अभियान’ के तहत कलेक्ट्रेट स्थित अधिवक्ता सभागार में ‘भगत सिंह की विरासत: निरन्तरता और परिवर्तन’ विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित की गयी।
गोष्ठी में मुख्य वक्ता ‘भूतपूर्व एचओडी, भौतिक विज्ञान विभाग, एमजीपीजी कॉलेज’ डॉ. सुबोध वर्मा और मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का ‘आह्वान’ पत्रिका के सम्पादक प्रसेन ने बात रखी। अध्यक्षता पीयूसीएल के नेता फ़तेह बहादुर ने की। रिटायर्ड शिक्षक सुधाकर ने भी बात रखी। संचालन अंजली ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत मेरा रंग दे बसन्ती चोला से की गयी।
सुबोध वर्मा ने कहा कि भगतसिंह और उनके संगठन एचएसआरए का स्पष्ट तौर पर यह मानना था कि गोरे साहबों के जाने के बाद अगर भूरे साहब सत्ता में बैठकर जनता पर डण्डे बरसाते हैं तो इससे आम जनता की ज़िन्दगी में कोई फर्क़ नहीं आने वाला। भगतसिंह ने कहा कि हमारा मक़सद हर तरह की लूट को ख़त्म करना है, चाहे वो एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान की लूट हो या एक देश द्वारा दूसरे देश की लूट हो।
भगत सिंह के जीवन और विचार में कोई अन्तर्विरोध नहीं था। भगत सिंह के विचार तेज़ी से विकसित हो रहे थे और उसी क्रम में उनका व्यवहार भी तेजी से बदल रहा था। आज बहुत से लोग पल्लवग्राही तरीके से भगत सिंह के जीवन के कुछ खास हिस्से को उसकी ऐतिहासिकता से काट कर अपनी राजनीतिक गोटियां लाल करने में लगे हुए है। यह काम भगतसिंह की विरासत को धूमिल करने वाला है।
पत्रिका ‘आह्वान’ के सम्पादक प्रसेन ने राष्ट्रीय आन्दोलन की विभिन्न धाराओं से भगत सिंह किस रुप में अलग थे और उनकी विकास प्रक्रिया किस तरह समाजवाद तक पहुॅंचती है, पर विस्तार से बात रखी। प्रसेन ने कहा कि भगत सिंह की विरासत को हमें निरन्तरता और परिवर्तन के द्वन्द्व के रूप में देखने की ज़रूरत है। अगर भगत सिंह की विरासत के निरन्तरता के पहलुओं की पड़ताल की जाए तो भगत सिंह ने भारतीय क्रान्तिकारी आन्दोलन के वैचारिक पक्ष को लेकर लिखा था कि इसका वैचारिक पक्ष बहुत ही दुर्बल रहा है। इसीलिए पेण्डुलम कभी सुधारवाद तो कभी आतंकवाद की ओर झूलता रहा है। आज भगत सिंह की शहादत के 9 दशक बीतने के बाद भी क्रान्तिकारी आन्दोलन की यह कमज़ोरी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। भगतसिंह और उनके साथियों ने राष्ट्रीय आन्दोलन के दौर में अंग्रेज़ों द्वारा अपनायी गयी ‘फ़ूट डालो और राज करो’ की नीति के ख़िलाफ़ संघर्ष किया और वर्गीय आधार पर लोगों को लामबंद करने का आह्वान किया। उन्होंने लिखा कि सभी ग़रीबों को यह समझा देना चाहिए कि वे चाहे किसी भी जाति या धर्म के हों, उनके हित एक हैं। उन्हें आपस में कभी नहीं लड़ना चाहिए। उन्होंने साम्प्रदायिकता के बारे में लिखा कि आज साम्प्रदायिकता की जो आग पूरे देश में लगायी जा रही है, उसे अगर रोका न गया तो इसे बुझाते-बुझाते आने वाली पीढ़ियों की कमर टूट जायेगी।
उन्होंने कहा कि आज आम जनता बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, आत्महत्या, भुखमरी, महंगी होती शिक्षा आदि से परेशान हैं। लोग जीवन से जुड़े हुई ज़रूरी और असली सवालों पर एकजुट होकर लड़ ना सकें, इसके लिए पूरे देश भर में लोगों को जाति-धर्म के नाम पर नफरती ज़हर परोसकर धार्मिक उन्मादी बनाकर आपस में ही लड़ाया जा रहा है। भगतसिंह के दौर में भी अंग्रेजों ने जनता को आपस में लड़ने के लिए फूट डालो और राज करो की नीति को अपनाया था। ऐसे समय में क्रान्तिकारियों की विचारों की रोशनी में आम जनता को इन तमाम समस्याओं के ख़िलाफ़ एकजुट और लामबंद करना होगा।
कार्यक्रम में जनचेतना की ओर से भगतसिंह के विचारों से सम्बन्धित किताबों की प्रदर्शनी लगाई गई। गोष्ठी में धर्मराज,अंबरीश, सौम्या, माया, दीपक, शेषनाथ, मनीष, धनंजय, मुकेश, राजकुमार, संजीव, रूबी, आदित्य, सुधाकर आदि शामिल हुए।
Post Comment