राजीव गांधी की 80वीं जयंती मना कांग्रेसियों ने उन्हें किया याद
गोरखपुर। भारतरत्न व देश के सर्वाधिक युवा प्रधान मंत्री राजीव गांधी की 80वीं जयन्ती "सद्भभावना दिवस" पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को याद करते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व महामंत्री व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य डॉ0 सैय्यद जमाल ने कहा कि बहुत अल्पकाल का अवसर पाने वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक महानायक स्व. राजीव गांधी ने आधुनिक भारत निर्माण की विकास यात्रा को अति महत्वाकांक्षी उत्कर्ष प्रदान किया। डॉ0 जमाल ने कहा कि संचार क्रांति के उस प्रवर्तक ने आईटी क्षेत्र में उस भारत की प्रतिभा को विश्व पटल पर छा जाने के नवयुग का सूत्रपात कर, भारत के कदम विश्व गुरुत्व की दिशा में आगे बढ़ा दिये, जिसकी सबसे बड़ी चिन्ता प्रतिभा पलायन हुआ करती थी। डेढ़ दशक पहले ही उन्होंने 21-वीं सदी के भारत निर्माण का न केवल ताना बाना बुना, बल्कि उसके अनुरूप शिक्षा नीति आदि के माध्यम से उस सपने को साकार करने की धरातलीय संरचना भी रच डाली।
डॉ0 जमाल ने कहा कि प्रौद्योगिकीय क्षेत्र में समर्थ भारत रचना की नींव डालने के साथ ही राजीवजी ने दुनिया भर में ढहते लोकतंत्रों एवं प्रगतिशील राजनीतिक व्यवस्थाओं के कठिन संक्रमण दौर में, उसके लिये जिम्मेदार आर्थिक सुधार के दबावों तथा धर्मोन्मादी आन्दोलनों के ध्वंसात्मक सभी पलीतों की भारत में भी मौजूदगी की चुनौतियों को सम्यक नीति से समाधान के अंजाम तक पहुंचाया और इस तरह भारतीय लोकतंत्र की सुदृढ़ता के लिये अपूर्व योगदान दर्ज किया। डॉ0 जमाल ने कहा कि संवैधानिक लोकतंत्र के वजूद को चुनौती दे रही पंजाब, असम, मिजोरम एवं काश्मीर समस्याओं को समाधान देकर, उन्हें संविधान की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जिस तरह एक बार फिर से वापस ढाला, उसे कृतज्ञ राष्ट्र भुला नहीं सकता। डॉ0 जमाल ने कहा कि 18 वर्ष के युवाओं को मत देने का ऐतिहासिक अधिकार देने के साथ ही जब दुनिया भर में लोकतंत्रों की टूटन का शोर था, तो उन्होंने पंचायतीराज संवैधानिक क्रांति की पहल कर संविधान में 35 से 36 लाख जनप्रतिनिधित्व के नये अवसर की क्रांति का सूत्रपात किया। उसमें सभी वंचित वर्गों की राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करते हुये न केवल भारतीय लोकतंत्र का फलक चौड़ा करने का कदम उठाया, बल्कि उसके द्वारा प्रतिनिधि प्रजातंत्र को सहभागी प्रजातंत्र की दिशा में कई कदम आगे बढ़ाने की दिशा में कदम उठाये। डॉ0 जमाल ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र को राजीवजी की अन्य बेहद महत्वपूर्ण देन थी कैंसर सरीखी दल बदल की भारतीय संसदीय लोकतंत्र की बीमारी के उपचार की अग्रणी पहल। सन् 1985 के दल बदल विरोधी कानून हेतु 52 वां संविधान संशोधन कराकर दसवीं अनुसूची का संविधान में समावेश किया। उस विधि को थोड़ी और सुदृढ़ता 2003 में अटल जी की सरकार ने दी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज उस कानून की लोकतंत्रात्मक संरक्षण भावना की धज्जियां उड़ाये जाने का दौर है, जो गहरी राष्ट्रीय चिन्ता की व्यापक बहस का विषय बनना चाहिये। दल बदल के रोग की स्थिति तो अब यह साबित हुई है कि 'मर्ज बढ़ता गया, ज्यों ज्यों दवा की'। उसके विरुद्ध और कड़े कानून ही नहीं, व्यापक सकारात्मक जनमत जागरण की भी जरूरत है। वह राजीव जी की दल बदल निषेध की भावना को सुदृढ़ करने का युगधर्म भी है। आज बात निहित स्वार्थ से दल बदल के बहुत आगे निकल चुकी है। विधायिका सदस्य कल्पना से अधिक धनराशि लेकर सदन से त्यागपत्र दे निष्ठा परिवर्तन की हद तक जा चुके हैं। सोच यह है कि उतनी बड़ी रकम के, जो सात पीढ़ी की कल्पना से परे है, तिहाई-चौथाई को ही खर्च कर फिर से चुनाव जीता जा सकता है। डॉ0 जमाल ने कहा कि जरूरत है सामूहिक दल बदल की ऐसी खतरनाक हद तक पहुंचा दी गई प्रवृत्तियों के विरुद्ध स्वस्थ जनमत जागृत होने की और ऐसे संवैधानिक सुधार की, जिससे बीच में त्यागपत्र देने वाले विधायिका सदस्यों के कुछ वर्षों तक चुनाव लड़ने के हक पर प्रतिबंध लगे।
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